काल चक्र प्रवर्तकों महाकाल प्रतापनः
अवंतिका नगरी एक अत्यंत प्राचीन नगरी है। यह कालगणना की नगरी है, इसीलिए यहां महाकालेश्वर कालगणना के देवता के रूप में स्थापित है।“काल चक्र प्रवर्तकों महाकाल प्रतापनः”
यह स्कंद पुराण में लिखा है।कालगणना का प्रारंभ तबसे हुआ जब सृष्टि का आरंभ हुआ। सृष्टि का आरंभ होने से समय का आरंभ हुई और समय के आरंभ होने से कालगणना आरंभ हुई और फिर समय के मान निर्धारित किए गए जैसे कल्प, युग, वर्ष, मास, सप्ताह, दिन, रात, घटी, पल, विपल, आदि।स्कंद पुराण के अवंतिखंड में यह उल्लेखित है की सृष्टि की संरचना यहां से है और सृष्टि की रचना यहां से होने से यह अवंतिका क्षेत्र विश्व का सबसे प्राचीन क्षेत्र है। एक अरब पंचान्नवे करोड़ वर्ष सृष्टि के आरंभ को हो चुके है और यह भूमि उतनी ही प्राचीन है। लंका से सुमेरू जाने वाली रेखा ( भूमध्य )एवं कर्क रेखा यही मिलती है और यह स्थान संभवतः महाकालेश्वर ही है इसीलिए भी यहां से कालगणना की जाति है।यहां कई ऐसे प्राचीन स्थान है जो कालगणना के संकेत देते है, जैसे अनादिकल्पेश्वर जो अनादि काल से या अनादि कल्प से यहां होने का संकेत देते है, वृद्धकालेश्वर पूर्व कल्प के स्वामी ( महाकालेश्वर ) होने का संकेत देते है, ८४ महादेव बीते ७ कल्प के १२ ज्योतिर्लिंग होने का संकेत देते है ( ७×१२=८४ ) इनके अतिरिक्त नव ग्रह, दस महाविष्णु, सप्त सागर के स्थान भी यहां विद्यमान है। इस प्रकार यह सब स्थान यहां कालगणना के संकेत देते है।भगवान श्री महाकालेश्वर का सृष्टि के आरंभ से होने का साक्ष्य भी स्कंद पुराण के दूसरे अध्याय में इस प्रकार मिलता है,
पुरा त्वेकार्णवे प्राप्ते नष्टे स्थावरजंगमे नाग्निर्न वायुरादित्यो न भूमिर्न दिशो नभः ।। 1
न नक्षत्राणि न ज्योतिर्न द्यौर्नेन्दुर्ग्रहास्तथा ।।
न देवासुरगन्धर्वाः पिशाचोरगराक्षसाः ।। 2 ।।
सरांसि नैव गिरयो नापगा नाब्धयस्तथा ।।
सर्वमेव तमोभूतं न प्राज्ञायत किञ्चन ।। 3 ।।
तदैको हि महाकालो लोकानुग्रहकारणात् ।।
तस्थौ स्थानान्यशेषाणि काष्ठास्वालोकयन्प्रभुः ।।4।।
अर्थ :- “जब जल, अग्नि, वायु, सूर्य, भूमि, दिशा, नक्षत्र, प्रकाश, आकाश, चंद्र, ग्रह, देव, असुर, गंधर्व, पिशाच, नाग, सरोवर, पर्वत, नदी, समुद्र नही थे जब कुछ ज्ञात नही था ऐसे समय अकेले महाकाल ही विद्यमान थे”।
इसी पुराण में वर्णित प्रतिकल्पा शब्द से पुराण की यही ध्वनि है कि प्रत्येक कल्प में इस नगरी का अस्तित्व रहा है, प्रलय पूर्व और प्रलयांत में भी ।स्कंद पुराण के अवंती खंड के प्रथम अध्याय मे माता पार्वती ने सर्वेश्वर भाग्वान् शिव से पृथ्वी पर स्थित सभि पुण्यतम स्थानो के बारे मे वर्णन करने हेतु अग्रह किया।
भाग्वान सर्वेश्वर ने निम्नलिखित स्थानों का उल्लेख किया-:
उपरोक्त सभी तीर्थों में स्कंदपुराण में भगवान शिव ने सबसे पुण्यशाली क्षेत्र “महाकाल वन” को बताया है जहा महाकाल विद्यमान रहते है। महाकाल वन क्षेत्र में एक योजन परिमित स्थान ब्रह्महत्यानाशक, भुक्ति मुक्ति दायक तथा कलिकल्मषहारी है। और यह भी वर्णित है की यह देवदुर्लभ क्षेत्र महाप्रलय में भी नष्ट नही होता।
तथा पुण्यतमं देवि महाकालवनं शुभम् ।। 6 ।।
यत्रास्ते श्रीमहाकालः पापेन्धनहुताशनः।
क्षेत्रं योजनपर्यन्तं ब्रह्महत्यादिनाशनम्।। 7 ।।
भुक्तिदं मुक्तिदं क्षेत्रं कलिकल्मषनाशम् । प्रलयेऽप्यक्षयं देवि दुष्प्रापं त्रिदशैरपि ।। 8 ।।
महाकाल वन क्षेत्र में पञ्च दिव्य गुण (विशेषताएं)
१. क्षेत्र २. पीठ ३. ऊषर ४. श्मशान ५. वन
महाकालवनंगुह्यंसिद्धिक्षेत्रंतथोषरम्। किञ्चिद्धह्यान्यथान्यानिश्मशानान्यूषराणिच॥
सर्वतस्तुसमाख्यातं महाकालवनंमुने ।
श्मशानमूषरं क्षेत्रं पीठन्तु वनमेवच ॥
पञ्चैकत्र न लभ्यन्ते महाकालपुरादृते॥*
जिस स्थान पर पातकों का क्षय होता हो (पातकों का नाश होता हो) उसे क्षेत्र कहा जाता है। जहा मातृकाओं का स्थान हो उसे पीठ कहा जाता है। जिस स्थान पर मृत्यु होने पर या प्राण त्यागने पर पुनः जन्म ना होता हो उसे ऊषर कहा जाता है। जिस स्थान पर भगवान भव नित्य क्रीड़ा करते है, रुद्र नित्य वास करते है, जो भूतगण (प्राणीगण) के लिए हितकारी हो, जो महादेव का इष्ट स्थान हो, जो महादेव को प्रिय हो उसे श्मशान कहा जाता है। ( श्मशान अन्य ११ क्षेत्रों को और कहा गया है जैसे अविमुक्त क्षेत्र, एकाम्र क्षेत्र, भद्रकाल क्षेत्र, करवीर वन, कोलागिरी, काशी, प्रयाग, अमरेश्वर, भरत, केदार तथा रुद्रमहालय इन स्थानों को भी श्मशान कहा गया है)
किंतु उपरोक्त पञ्च दिव्य गुण एक साथ महाकाल वन के अलावा अन्य किसी स्थान पर नही पाए जाते।
पृथ्वी पर नैमिष तथा पुष्कर तीर्थ उत्तम है, तीनों लोको में त्रिभुवन में कुरुक्षेत्र सबसे श्रेष्ठ है, वाराणसी कुरुक्षेत्र से दस गुना अधिक श्रेष्ठ एवं पुण्यदायी है, परंतु वाराणसी से भी दस गुना अधिक श्रेष्ठ एवं पुण्यप्रद महाकाल वन है।
प्रभास तीर्थ सभी तीर्थों में उत्तम है एवं पिनाकी का अद्याक्षेत्र है, श्रीशैल एवं देवदारुकावन भी उत्तम है इनसे दस गुना पुण्यशाली वाराणसी है और इस से भी दस गुना अधिक पुण्यशली स्थान महाकाल वन है, यह स्कंद पुराण के अवंती खंड में लिखा है।
पृथिव्यानैमिषंतीर्थमुत्तमं तीर्थपुष्करम्॥२८॥ त्रयाणामपिलोकानां कुरुक्षेत्रं च प्रशस्यते। कुरुक्षेत्राद्दशगुणा पुण्यावाराणसीमता ॥२९॥ तस्माद्दशगुणंव्यास! महाकालवनोत्तमम्। प्रभासाद्यानितीर्थानिपृथिव्यामिहयानितु ॥३०॥
प्रभासमुत्तमंतीर्थ क्षेत्रमाद्यंपिनाकिनः।
श्रीशैलमुत्तमंतीर्थं देवदारुवनंतथा ॥३१॥
तस्मादप्युत्तमा व्यास! पुण्या वाराणसी मता ।
तस्माद्दशगुणं प्रोक्तं सर्वतीर्थोत्तमं यतः ॥३२॥
हर कल्प में उज्जयिनी महाक्षेत्र के नाम-
वेद व्यास सनत कुमार से पूछते है की ऐसा कैसे है की दिव्य नगरी उज्जयनी का वर्णन सात कल्पो से होता आ रहा है।, हे मुनीश्रेष्ठ मुझे इसके नाम बताए और वे क्या है।,
तब उत्तर में सनत कुमार कहते है
हे व्यास, इस दिव्य नगरी कुशस्थली की ख्याति सुनिए,
नाम एवं कर्म दोनो में श्रेष्ठ जो ७ कल्पो से स्थित है ( वास कर रही है)
प्रथम कल्प में स्वर्णश्रृंगा
द्वितीय कल्प में कुशस्थली
तृतीय कल्प में अवंतिका
चतुर्थ कल्प में अमरावती
पंचम कल्प में चूड़ामणि
षष्ठम कल्प में पद्मावती
सप्तम कल्प में उज्जयिनी
सभी कल्पो के अंत होने के बाद यह पुनः इसी प्रकार नामांकित होगी (स्वर्णश्रृंगा आदि )
भगवान गणेश हिन्दू धर्म के प्रमुख देवता हैं, जिनका विशेष महत्व है। वह विज्ञान, कला, और शुभ आरंभ के देवता के रूप में पूजे जाते हैं, वे विघ्नहर्ता हैं, जिनकी आराधना शुभ कार्यों की समृद्धि और सुख-शांति के लिए की जाती है। गणेश चतुर्थी हिन्दू धर्म में उनके प्रमुख त्योहार में से एक है, जिसे बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।
भगवान गणेश हिन्दू धर्म में सर्वप्रथम पूजित देवता हैं। धार्मिक ग्रंथों और पुराणों के अनुसार, जब भी कोई शुभ कार्य या कोई नवीन कार्य का आरंभ किया जाता है तो सर्वप्रथम गणेश जी का आवाहन कर उनको पूजा जाता है। धर्मशास्त्र के अनुसार किसी भी देवी देवता की विशेष पूजन में भी सर्वप्रथम गणेश जी की ही पूजन की जाती है, यहां तक के किसी तांत्रोक्त पूजन के भी सर्वप्रथम गणेश जी को पूजा जाता है। गणेश जी को “विघ्नहर्ता” कहा जाता है, और उनकी पूजा का उद्देश्य है कि वे सभी आगामी कार्यों में आने वाले विघ्नों को दूर करें और सुख-शांति की प्राप्ति में सहायता करें
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Shiva (/ˈʃɪvə/; Sanskrit: शिव, romanized: Śiva, lit. ’The Auspicious One’ [ɕɪʋɐ]), also known as Mahadeva (/məˈhɑː ˈdeɪvə/; Sanskrit: महादेव:, romanized: Mahādevaḥ, lit. ’The Great God’ [mɐɦaːd̪eːʋɐh]),[9][10][11] is one of the principal deities of Hinduism.[12] He is the Supreme Being in Shaivism, one of the major traditions within Hinduism.