काल चक्र प्रवर्तकों महाकाल प्रतापनः

KALSARP POOJA

भारतीय ज्योतिष में राहु और केतु को छाया ग्रह मन जाता है। इनका कोई भौतिक अस्तित्व नहीं है लेकिन यह व्यक्ति के जीवन पर व्यापक असर डालते हैं।

राहु और केतु ऐसे ग्रह हैं जो हमेशा एक दूसरे के सामने रहते हैं या यूँ कहें की एक दूसरे के सापेक्ष हमेशा 180 डिग्री पर होते हैं। यदि राहु कुंडली के पहले भाव में स्थित है तो केतु हमेशा सातवें भाव में होगा, यदि केतु ग्यारहवें भाव में है तो राहु हमेशा पांचवे भाव में स्थित होगा।

अब यदि किसी की कुंडली में बाकी सारे ग्रह राहु और केतु के ध्रुम के एक तरफ ही आ जाएँ तो यह एक योग का निर्माण करेगा जिसे हम कालसर्प योग के नाम से जानते हैं। उदहारण के लिए मान लेते हैं की किसी की कुंडली में राहु पंचम भाव में और केतु ग्यारहवें भाव में स्थित है। अब यदि बाकी सारे ग्रह (सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र एवं शनि) राहु-केतु ध्रूम के एक ही तरफ यानी छठे, सातवें, आठवें, नौवें और दसवें भाव या फिर बारहवें, पहले, दूसरे, तीसरे और चौथे भाव में ही स्थित हो जाएँ तो उस कुण्डली में कालसर्प योग माना जायेगा।

कालसर्प दोष को नवीन ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सबसे अशुभ दोषों में से एक माना गया है. राहु-केतु से निर्मित होने वाला ये दोष बहुत ही खराब माना गया है. मान्यता है कि जिस भी व्यक्ति की कुंडली में कालसर्प दोष होता है, उसके जीवन में छोटी-छोटी चीजों को पाने के लिए भी बहुत संघर्ष करना पड़ता है. इसके साथ ही कुंडली में अन्य ग्रहों की अशुभ स्थिति से इस दोष का प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है. ऐसा व्यक्ति परेशानियों से मुक्त नहीं हो पाता है. कोई न कोई समस्या उसे जकड़े ही रहती है. कालसर्प दोष का कुंडली में समय रहते पता लगाकर उसका उपाय करना चाहिए.

कालसर्प दोष की पूजा कब होती है?

नागपंचमी – श्रावण मास मे आने वाली नागपंचमी को भी कालसर्प दोष निवारण पूजा करवाने के लिए बहुत ही विशेष दिन है। नागपंचमी के दिन पूरे विधि विधान से पूजा कराने से काल सर्प दोष से मुक्ति अवश्य मिल जाती है।

पितृ पक्ष – जातक पितृ पक्ष मे किसी भी दिन कालसर्प दोष शांति पूजा करवा सकता है, क्योंकि आश्विन कृष्ण पक्ष प्रथमा से अमावस्या तक के 15 दिनों में कालसर्प दोष और पितृ दोष की शांति के पूजा की जा सकती है।

मास शिवरात्री – हिन्दी कलेंडर के अनुसार प्रत्येक माह के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी को मास शिवरात्रि मनाई जाती है, कालसर्प दोष की पूजा के लिए मास शिवरात्री को अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। इस दिन पूजा करने से भगवान शिव जल्द ही प्रसन्न हो जाते है, क्योकि यह दिन भगवान शिव को समर्पित होता है।

अमावस्या – ज्योतिषियो के अनुसार माना जाए तो, अमावस्या को कालसर्प दोष पूजा करवाना सबसे उत्तम माना गया है। अमावस्या मे भी माघ अमावस्या, वैशाख अमावस्या, श्रावण अमावस्या और आश्विन अमावस्या का विशेष महत्व होता है। इसके अलावा सोमवती या शनैश्चरी अमावस्या पर भी कालसर्प दोष की पूजा की जा सकती है।

कालसर्प की पूजा की मान्यता कहा है?

देश के कुछ प्रमुख धार्मिक स्थलों पर इसके लिए खास पूजा की जाती है। बता दें कालसर्प दोष की पूजा खासतौर पर उज्जैज (मध्यप्रदेश), ब्रह्मकपाली (उत्तराखंड), त्रिजुगी नारायण मंदिर (उत्तराखंड), प्रयाग (उत्तरप्रदेश), त्रीनागेश्वरम वासुकी नाग मंदिर (तमिलनाडु) त्र्यंबकेश्वर (महाराष्ट्र)आदि जगहों पर संपन्न होती है।

कुंडली में कालसर्प दोष कैसे बनता है?

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब कुंडली के सातों ग्रह पाप ग्रह राहु-केतु के मध्य आ जाएं तो कालसर्प दोष बनता है. इसी प्रकार से इस दोष के दो अन्य भेद भी बताए गए हैं. पहला उदित गोलार्द्ध कालसर्प दोष दूसरा अनुदित गोलाद्ध कालसर्प दोष. शास्त्रों में राहु और केतु को सर्प की भांति बताया गया है. सर्प की भांति ये व्यक्ति के भाग्य को जकड़ लेते हैं. राहु को सर्प का मुख और केतु इसकी पूंछ है. जिस व्यक्ति की कुंडली में ये दोष होता है, वो मृत्यु तुल्य कष्ट भोगता है. शास्त्रों में सर्प यानि सांप को काल का पर्याय माना गया है.

अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कंबलम्।
शंखपालं धृतराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा।।
एतानि नवं नामानि नागानां च महात्मनान।
सायंकाले पठेन्नित्यं प्रातं काले विशेषत:।।
तस्य विष भयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत्।

अनंत, वासुकि, शेष पद्मनाभ, कंबल, शंखपाल, धृतराष्ट्र, तक्षक और कालिया सभी नागों के देवता है. ऐसा माना जाता है कि जो कोई इनका प्रतिदिन स्मरण करता है. उसे नागों का भय नहीं रहता है और सदैव विजयी प्राप्त करता है.

कालसर्प के लक्षण

जिन लोगों की कुंडली में कालसर्प दोष होता है उन्हें कई प्रकार की दिक्कतें होती है. इन दिक्कतों के आधार पर भी समझा जा सकता है कि कुंडली में कालसर्प दोष है- 

  • शिक्षा ग्रहण करने में बार-बार रूकावट आना.
  • बुरे सपने दिखाई देना.
  • सपने में सांप दिखाई देना.
  • अकाल मौत का भय बना रहना.
  • अज्ञात भय जैसी स्थिति बनी रहती है.
  • सपने में पानी में गिरना, झगड़ा और विवाद में फंसना.
  • घर में हर समय कलह बनी रहती है.
  • संतान उत्पत्ति में बाधा आना.
  • जमा पूंजी नष्ट होना.
  • धन की समस्या सदैव बनी रहना.
  • मानसिक शांति न मिलना.
  • ऐसा रोग होना जो देर से पता चलता है.
  • कुष्ट रोग
  • दवा खाने के बाद भी रोग ठीक नहीं होता है.
  • विवाह में देरी.
  • प्रेम विवाह में बाधा.
  • प्रमोशन में दिक्कत
  • शत्रुओं की संख्या अधिक होना.

कालसर्प दोष कितने प्रकार का होता है?

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार 12 प्रकार के कालसर्प दोष का वणर्न मिलता है. जो इस प्रकार हैं-

1.अनंत कालसर्प योग

यदि राहु प्रथम भाव में स्थित हो और केतु सप्तम भाव में, और उनके अक्ष के एक ही तरफ सारे अन्य ग्रह स्थित हो जाएँ तो अनंत कालसर्प योग बनता है।

2. कुलिक कालसर्प योग

यदि राहु दूसरे भाव में और केतु अष्टम भाव में स्थित हो तथा उनके बीच सारे अन्य ग्रह स्थित हो जाएँ तो कुलिक कालसर्प योग का निर्माण होता है।

3. बासुकी कालसर्प योग

जब कुंडली के तृतीय भाव में राहु और नवम भाव में केतु स्थित हों और उनके बीच सारे ग्रह आ जाएँ तो इस योग को बासुकी कालसर्प योग कहा जाता है।

4. शंखपाल कालसर्प योग

यदि राहु चतुर्थ भाव में स्थित हो और केतु दशम भाव में और बाकी सारे ग्रह इन दोनों के अक्ष के एक ही तरफ स्थित हो जाएँ तो ऐसी स्थिति में शंखपाल कालसर्प योग का निर्माण होता है।

5. पद्म कालसर्प योग

जब कुंडली के पंचम भाव में राहु स्थित हो और ग्यारहवें भाव में केतु और बाकी सारे ग्रह राहु-केतु अक्ष के एक ही तरफ स्थित हों तो इस स्थिति में पद्म कालसर्प योग का निर्माण होता है। ऐसा व्यक्ति अपने पूर्वजों (यथा दादा,परदादा आदि) के शाप से शापित होता है या फिर उसके किसी पूर्वज ने ही उसके रूप में जन्म लिया होता है।

6. महापद्म कालसर्प योग

जन्मकुंडली के छठे भाव में राहु स्थित हो और बारहवें भाव में केतु हो और बाकी सारे ग्रह इनके अक्ष के एक ही तरफ स्थित हो जाएँ तब महापद्म कालसर्प योग का निर्माण होता है।

7. तक्षक कालसर्प योग

यदि कुण्डली के सातवें भाव में राहु और प्रथम भाव में केतु स्थित हो एवं अन्य सभी ग्रह राहु-केतु अक्ष के एक तरफ ही आ जाएँ तब तक्षक कालसर्प योग बनता है।

8. कर्कोटक कालसर्प योग

यदि जन्मकुंडली के आठवें भाव में राहु और दूसरे भाव में केतु स्थित हो और इनके अक्ष के एक ही ओर बाकी सारे ग्रह स्थित हो जाएँ तब कर्कोटक कालसर्प योग बनता है।

9. शंखनाद कालसर्प योग

जब जन्मकुंडली के नौवें भाव में राहु एवं तीसरे भाव में केतु हो और अन्य सारे ग्रह राहु-केतु अक्ष के एक ही तरफ स्थित हों तो ऐसे योग को शंखनाद कालसर्प योग कहते हैं।

10. घातक कालसर्प योग

यदि कुंडली के दशम भाव में राहु एवं चतुर्थ भाव में केतु हो और बाकी सारे ग्रह राहु-केतु अक्ष के एक ही तरफ आ जाएँ तो घातक कालसर्प योग का निर्माण होता है।

11. विषधर कालसर्प योग

जब कुंडली के ग्यारहवें भाव में राहु और पंचम भाव में केतु हो और अन्य सभी ग्रह इनके अक्ष के एक तरफ हों तब ऐसे योग को विषधर कालसर्प योग कहेंगे।

12. शेषनाग कालसर्प योग

यदि जन्मकुंडली के बारहवें भाव में राहु एवं छठे भाव में केतु स्थित हो और अन्य सभी ग्रह राहु-केतु अक्ष के एक ही तरफ स्थित हों तब इस योग को शेषनाग कालसर्प योग कहते हैं।